Saturday, August 20, 2011

आज फिर से रोने को दिल चाहता है...


आज फिर से रोने को दिल चाहता है...
बीती बातों में खोने को दिल चाहता है...
याद आती है मुझको वो बातें पुरानी...
वो भोली सी मस्ती,वो प्यारी कहानी...
उन्ही यादों में फिर से खोने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को मेरा दिल चाहता है...

मिले थे कभी हम इस अजनबी शहर में...
चले हम संग -संग अनजाने सफ़र...
पलकों में थे सपने,दिल में एक उमंग थी...
रास्ता था मुश्किल,ख़ुद से हर पल एक नयी जंग थी...
अब तो बस फिर यादें ही रह जाएँगी...
कुछ बातें रह जाएगी,वो रातें रह जाएँगी...
उन्ही रातों में फिर से सोने को जी चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...


खैर मिल पाएगा नही अब वो कंधा...
जिस पर सर रख कर हम रो सके...
कुछ तुमसे कह सके ,कुछ तुमको सुन सके...
हँसता हूँ फिर भी आँखों में नमी है...
रोने के लिए अब आँखों में आँसू भी नही है...
पलकों का समंडर भी अब सूना लगता है...
तन्हा मुझको अब घर का आईना लगता है...
अब हर पल ख़ुद से बचने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...


 
कितने अजीब थे वो मस्ती भरे दिन...
सपने थे आँखों में नये रोज़ दिन...
बातों में हर पल थी शहद सी मिठास..
हमे दूरियों का ना था एहसास...
खेले थे हम हैर पल जिन खिलौने से...
उन खिलौने से फिर खेलने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...
 

pain
                                        

1 comment:

  1. बेहद सुन्दर भाव विभोर करती रचना...
    दिल को छू लेनेवाली पंक्तिया..

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